बीहड़ों का बागी, निर्भय गुर्जर की दास्तान जो रोंगटे खड़े कर दे, एके-47 वाली गैंग, डकैत के साथ 7 दिन रहे पत्रकार विनोद ने किए कई चौंकाने वाले खुलासे

चंबल। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के चंबल घाटी के बीहड़ों में एक वक्त ऐसा था, जब बंदूक के दम पर कानून को खुली चुनौती देने वाला नाम था डकैत निर्भय गुर्जर। अपहरण, फिरौती, लूट और हत्या – इन अपराधों से उसका साम्राज्य पनपा और बीहड़ों का आतंक बन गया। एक दौर था जब चंबल के बीहड़ों में पुलिस भी कदम रखने से डरती थी, और इस डर की सबसे बड़ी वजह था – डकैत निर्भय गुर्जर। वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित बीहड़ों में उसका आतंक इस कदर था कि गांवों के लोग सूरज ढलने के बाद घरों से बाहर निकलने से कतराते थे। आईए जानते हैं चंबल के आखिरी डकैत जो अब अपने आप को द किंग ऑफ चंबल भी कहता था निर्भय सिंह गुर्जर के बारे में हम आपको वह फोटो भी दिखाएंगे जो आज से लगभग 22 साल पहले लिया गया था।
वैसे तो निर्भय सिंह गुर्जर का पता कोई नहीं लग सकता था। क्योंकि वह जंगल के बीच में अपनी लगातार लोकेशन बदलता रहता था, लेकिन उस दौर में कुछ पत्रकार थे जो निर्भय सिंह गुर्जर तक पहुंचे थे। इनमें से एक नाम था विनोद शर्मा आपको बता दें की उस समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दौर शुरू हुआ था और भिंड में कुछ ही नाम थे जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए काम करते थे। निर्भय सिंह गुर्जर को टीवी पर आने का शौक भी हो गया था जिसके बाद उसने कुछ पत्रकारों को बुलाकर इंटरव्यू भी दिया था। उस दौर में निर्भय सिंह गुर्जर का इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार विनोद शर्मा ने न्यूज inshorts से बातचीत में बताया कि आखिर कैसे हुआ चंबल के आखिरी डकैत का खात्मा।
70 से ज्यादा केस, करोड़ों की फिरौती, और बीहड़ का खौफ
वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा बताते हैं कि निर्भय गुर्जर के खिलाफ यूपी और एमपी में 70 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। वह इतने संगीन मामलों में वांछित था कि उस पर 5 लाख रुपये तक का इनाम घोषित किया गया था। पुलिस के कई ऑपरेशन्स नाकाम रहे क्योंकि वह इलाके की भौगोलिक संरचना का मास्टर था। निर्भय गुर्जर गरीबों को पैसे और सुविधाएं देता था और खुद को चंबल का रॉबिनहुड बताता था। उसके गांव में आज भी कुछ लोग उसे “मसीहा” मानते हैं। कई बार उसने खुद चुनाव लड़ने की इच्छा भी जाहिर की थी। हालांकि, उसकी यह योजना कभी पूरी नहीं हो सकी।
पत्रकार विनोद शर्मा ने बताया कि निर्भय गुर्जर ने उन दिनों अपनी खुद की एक टीम तैयार की थी।
डकैत निर्भय गुर्जर का नाम 90 के दशक में Chambal के बीहड़ों में खौफ का पर्याय बन चुका था। लेकिन उसकी असली ताकत सिर्फ उसकी बंदूक नहीं थी, बल्कि वो ‘आर्मी’ थी जो उसने अपने इर्द-गिर्द तैयार कर रखी थी। निर्भय गुर्जर की आर्मी क्या थी? यह “आर्मी” किसी आधिकारिक सेना की तरह नहीं थी, बल्कि यह बीहड़ में रहने वाले हथियारबंद लोगों का एक संगठित समूह था, जो निर्भय के इशारे पर किसी को भी उठाने, फिरौती वसूलने और यहां तक कि पुलिस पर हमला करने से भी पीछे नहीं हटता था। 100 से ज्यादा लोग उसके गिरोह में शामिल थे, जिनमें कई प्रशिक्षित निशानेबाज भी थे।
गिरोह में अलग-अलग जिम्मेदारियाँ बांटी गई थीं – कुछ लोग अपहरण करते, कुछ लोग इलाके में खुफिया जानकारी जुटाते और कुछ पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखते। गिरोह के पास एके-47, कार्बाइन, देशी कट्टे जैसी कई आधुनिक और खतरनाक हथियार थे। निर्भय की आर्मी का नेटवर्क उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक फैला हुआ था।
निर्भय की आर्मी को कुछ स्थानीय नेताओं का संरक्षण भी प्राप्त था। यही वजह थी कि उसकी आर्मी कई बार पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो जाती थी। निर्भय की आर्मी में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं, जो या तो जबरन लाई गई थीं या खुद उसकी विचारधारा से प्रभावित होकर गिरोह का हिस्सा बनी थीं।
न्यूज़ inshorts से बातचीत के दौरान पत्रकार विनोद शर्मा ने बताया कि निर्भय तक पहुंचना आसान नहीं था। क्योंकि वह आसानी से किसी पर भी भरोसा नहीं करता था अगर उसे जरा सा भी शक होता था तो वह गोली चलाने में एक सेकंड भी नहीं लगता था और जिस पर शक होता था उसे तत्काल मौत के घाट उतार देता था। जब वह निर्भय से मिलने के लिए गए थे तो कई बार निर्भय गुर्जर ने अपनी लोकेशन उनकी मौजूदगी में बदली थी और उनको भी इस बात का डर था कि कहीं निर्भय को यह ना लगे कि उसकी मुखवारी हुई है। वहीं डकैत निर्भय जिसको भी इंटरव्यू देता था इंटरव्यू देने के बाद उसको अपने साथ दो-तीन दिन रखता था और उसके बाद ही जाने देता था।
अगर कोई डकैत से मिलने जाता था, तो वह उसकी मर्जी से ही वहां पहुंच पाता था और उसकी मर्जी से ही वहां से निकल सकता था। पत्रकार विनोद शर्मा ने बताया कि जब वे वहां रात को रुके थे तो अचानक बीच-बीच में फायरिंग शुरू हो जाती थी। जब उन्होंने डकैत से पूछा कि यह फायरिंग का मतलब क्या है, तो डकैत ने बताया कि जब भी उसके गिरोह को जरा सा भी शक होता है कि कोई आ रहा है तो वह फायरिंग शुरू कर देते हैं। अगर किसी जानवर की भी आवाज आती है तो वह फायरिंग शुरू कर देते हैं।
विनोद शर्मा ने बताया कि उस समय तत्कालीन भिंड के एसपी गाजी राम मीणा और साजिद फरीद शापू इसके अलावा इटावा के एसपी दलजीत सिंह चौधरी ने पूरी तरीके से निर्भय गुर्जर का नेटवर्क तोड़ने की कोशिश की थी। एक हद तक वह इसमें कामयाब भी हुए थे। लेकिन जब तक वह निर्भय गुर्जर तक पहुंचते तब तक उनके ट्रांसफर होते रहे आखिर इसके पीछे क्या कारण रहा यह कोई नहीं बता पाया।
2005 में पुलिस ने निर्भय गुर्जर को एक मुठभेड़ में मार गिराया। इसके बाद धीरे-धीरे उसकी आर्मी बिखरने लगी। कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया और कुछ पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए। निर्भय गुर्जर की आर्मी Chambal के बीहड़ों में एक ऐसी ताकत बन चुकी थी, जो पुलिस और सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। यह सिर्फ एक डकैत का गिरोह नहीं था, बल्कि एक संगठित आपराधिक तंत्र था जिसने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था।